Chhatra Jivan Kya Hai :- विद्यार्थी जीवन, जीवन की मधुरतम अवस्था है। यह प्रसन्नता एवं आनंद की अवस्था है। इस अवस्था में वह शाहंशाह होता है। उसे जीवन की कोई अन्य चिंता नहीं होती और कोई भार नहीं होता है। यह जीवन की स्वतंत्र अवस्था होती है। न रोटी दाल की चिंता न कपड़े की फ्रि फिक्र।
उसके जीवन में चिंता एवं दुख पानी के बुलबुले के समान आते हैं और अगले ही क्षण मिट जाते हैं। उछलना, कूदना, खेलना और ठहाका मारकर हँसना, इस जीवन की आम बात होती है। इस सुखमय जीवन की याद मनुष्य को जीवन भर रहती है। दोस्तों अगर आप विद्यार्थी जीवन के बारे में पढ़ना चाहते हैं तो इस आर्टिकल को शुरू से अंत तक जरूर पढ़ें|
उपसंहार :-
यह जीवन है तो बहुत आनंदपूर्ण, पर विद्यार्थी के कंधे पर ज्ञान प्राप्त करने की गंभीर जवाबदेही भी रहती है। जो इस जीवन का उपयोग पढ़ने, लिखने और ज्ञान प्राप्त करने में करता है उसका भविष्य का जीवन सुखमय बन जाता है।
इसके विपरीत जो छात्र अपने समय को केवल खेलने-कूदने और बेकार के कामों में बर्बाद कर देते हैं, उनके भविष्य का जीवन दुखमय और कठिन बन जाता है। ऐसे लोग जीवन भर पछताते रहते हैं। समय बीत जाने पर पछताने से कुछ हाथ नहीं आता है। अत: इस जी जीवन में सर्तक होकर समय का सदुपयोग करना चाहिए। Chhatra Jivan Kya Hai
परिचय : विद्यार्थी’ शब्द दो शब्द- खंडों के मिलने से बना है- विद्या + अर्थी । विद्या का अर्थ होता है – ज्ञान, बुद्धि और विवेक । अर्थी का अर्थ – होता है चाहने वाला’। अतः विद्यार्थी शब्द का अर्थ है विद्या या ज्ञान को चाहने वाला ।
यों तो मनुष्य जीवन भर सीखता रहता है पर विद्यार्थी जीवन सीखने और ज्ञान प्राप्त करने की विशेष अवस्था है। इस उम्र में विद्यार्थी तीव्र गति से ज्ञान प्राप्त करता है। जो ठीक से मन लगाकर बचपन में ज्ञान प्राप्त करता है, उसकी आधारशिला मजबूत होती है और जीवने में वह सफल रहता है।
विशेषताएँ :-
यह समय जीवन का सवेरा है। सीखने के लिए परिवार, समाज और विद्यालय का वातावरण उसके सामने बिछा रहता है। यह समय लगातार सीखने और नए-नए ज्ञान प्राप्त करने का है। इस अवस्था में छात्रों का एक मात्र काम विद्याध्ययन करना होता है।
यह जीवन केवल विद्यालय जाकर किताबी ज्ञान प्राप्त करने के लिए नहीं होता है, अपितु घर, बाहर, समाज में उसको पग-पग पर बहुत कुछ सीखना है।
सुखमय अवस्था :-
छात्र का जीवन मनुष्य जीवन की आधारशिला है। उसे आरम्भ में जिस प्रकार की शिक्षा मिलेगी, जिस प्रकार का उसका वातावरण होगा, वह उसी के अनुसार ढलेगा। उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए उसका छात्र जीवन आदर्श होना चाहिए।
शिक्षाविहीन व्यक्ति पशु के समान है। पशुत्व से मनुष्यता तक पहुँचने के लिए हर उच्च आदर्श उसको प्रदान करना माता-पिता, समाज तथा सरकार का कर्तव्य है।
छात्र का जीवन तपस्या का जीवन है। इस जीवन में ही वह शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक गुणों का विकास करता है। जीवन के आरम्भ में यदि वह अनुशासन के नियमों का पालन करता है, तो उसका जीवन अवश्य सुखमय होगा।
अतः आदर्श विद्यार्थी बनने के लिए उसके अन्दर आज्ञा पालन, अनुशासन एवं सद्बुद्धि अवश्य होनी चाहिए। Chhatra Jivan Kya Hai
माता-पिता, गुरुजनों और अपने से बड़े व्यक्तियों का सम्मान करना तथा उनकी आज्ञा के अनुसार चलना अच्छे छात्र का कर्तव्य है। छात्र को एकाग्रचित होकर विद्या का अध्ययन करना चाहिए। उसे हर स्थान पर संयम से काम करना चाहिए।
कक्षा अथवा छात्रावास में, खेल के मैदान में अथवा भोजन के स्थान पर उसके संयम की परीक्षा होती है। उसका जीवन नियमित होना चाहिए। उसे जिज्ञासु होना चाहिए। प्रत्येक नई चीज को सीखने का उसे चाव होना चाहिए। Chhatra Jivan Kya Hai
आदर्श विद्यार्थी को सादा जीवन बनाया रखता है और उच्च विचार के सिद्धान्त का पालन करना सिखाता है और उसे अपने साथियों के साथ मित्रता बनाकर हमेसा रखना चाहिए।
पढ़ने के साथ-साथ हमे अपने स्वास्थ्य का ध्यान भी रखते हुए उसे एक अच्छा खिलाड़ी होना चाहिए। आदर्श विद्यार्थी को मधुरभाषी, स्वावलंबी तथा सदाचारी होना चाहिए। Chhatra Jivan Kya Hai
उसे किसी के साथ झूठ, छल-कपट का व्यवहार नहीं करना चाहिए। उसे समय और धन का मूल्य समझना चाहिए। आदर्श विद्यार्थी को कठोरता से अपने कर्तव्य का पालन करनाचाहिए। परीक्षा में केवल अपनी मेहनत के बल पर उत्तीर्ण होना चाहिए। है।
यह प्रसन्नता एवं आनंद की अवस्था है। इस अवस्था में वह शाहंशाह होता है।उसे जीवन की कोई अन्य चिंता नहीं होती और कोई भार नहीं होता है। यह जीवन की स्वतंत्र अवस्था होती है। न रोटी दाल की चिंता न कपड़े की फ्रि फिक्र।
उसके जीवन में चिंता एवं दुख पानी के बुलबुले के समान आते हैं और अगले ही क्षण मिट जाते हैं। उछलना, कूदना, खेलना और ठहाका मारकर हँसना, इस जीवन की आम बात होती है। इस सुखमय जीवन की याद मनुष्य को जीवन भर रहती है।
पर संयम से काम करना चाहिए। कक्षा अथवा छात्रावास में, खेल के मैदान में अथवा भोजन के स्थान पर उसके संयम की परीक्षा होती है। उसका जीवन नियमित होना चाहिए। उसे जिज्ञासु होना चाहिए। प्रत्येक नई चीज को सीखने का उसे चाव होना चाहिए।
छात्र या विद्यार्थी अपने देश की संपत्ति है। देश की उन्नति उन्हीं छात्र या विद्यार्थी पर निर्भर है। यही कारण है कि इन्हें अपने देश का कर्णधार भी कहा जाता है। छात्र जीवन में कुछ कर डालने की भावना ही उनमें जोश भरती रहती है।
इस जोश को कम करने के लिए अनुभव की आवश्यकता होती है। अब तक देश के जितने भी महान नेता हुए हैं वे सब अपनी छात्र अवस्था से ही बनने शुरू हो गये थे।
छात्रों में सामर्थ्य होती है यदि उसका उचित मार्गदर्शन कर दिया जाए तो वे निश्चित ही अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं। माता जीजाबाई के उपदेशों का ही फल था कि साधनहीन शिवाजी ने देखते-देखते एक साम्राज्य का निर्माण कर डाला !
गुरुगोविन्द सिंह ने खालसा पंथ की नींव डाली, महात्मा गाँधी और जवाहरलाल नेहरू भी छात्र अवस्था से ही देश सेवा में जुट गये।
छात्र जीवन किसी भी मनुष्य के जीवन की नींव होता है। यदि नींव अभी से मजबूत होगी तो भविष्य भी सुरक्षित तथा सुदृढ़ होगा। यह कहने से अभिप्राय है कि छात्र को अपने इस समय में इतनी अधिक मेहनत कर लेनी चाहिए
कि फिर भविष्य में उसे कष्ट न भोगना पड़े। जो बालक छात्र जीवन मौज-मस्ती में गुजार देता है उसे आजीवन परिश्रम करना पड़ता है। इसलिए छात्रों को समय का सदुपयोग करते हुए कड़ी मेहनत कर अपने भविष्य के जीवन को सुरक्षित बनाने का प्रयत्न करना चाहिए।
विद्यार्थी जीवन, मनुष्य के वाह जीवन काल होता है। जिसमें वह मनुष्य विद्या ग्रहण करता है। यह मनुष्य के जीवन का स्वर्णिम काल होता है। इस काल में छात्र अपने शरीर तथा मस्तिष्क दोनों की विकसित करता है। इस कालमें उसे अपने अधिकारों के साथ-साथ अपने परिवार, समाज तथा राष्ट्र के लिए अपने कर्त्तव्यों का भी ज्ञान हो जाता है। Chhatra Jivan Kya Hai
विद्यार्थी जीवन दूसरे शब्दों में उसके ब्रह्मचार्य का जीवन है। यह काल उसके जीवन की नीव है जिस परवह अपने भावी जीवन के भवन खड़ा कर सकता है। यदि वह अपने भावी जीवन को सुखमय बनाना चाहता है तो उसे बड़े लोगों की संगति से बचना चाहिए। शील, विनय, सदाचार, गुरूजनोंका आदर, अनुशासन आदि विद्यार्थी के विशेष गुण हैं।
मनुष्य की इस विद्यार्थी जीवन में ही अपने शरीर की भी खेल:-
कूद व व्यायाम व्यायाम द्वारा हष्ट-पुष्ट बनाना चाहिए क्योकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। इस काल में मनुष्य की ‘सादा जीवन’ तथा ‘उच्च विचार’ के आदर्श की अपनाना चाहिए। तभी उसका भावी जीवन श्रेष्ठ बन सकता है।छात्र जीवन में बहुत-सी बातों का महत्तव है जिनमें से एक अनुशासन भी है।
अनुशासन का अर्थ है, शासन या नियंत्रण को मानना, नियम-कायदे को स्वीकार करना। छात्र यदि अनुशासित हो तो उसकी राहें आसान हो जाती हैं। अनुशासन उसे उसकी मंजिल तक पहुँचा देता है।
बचपन अनुशासित होना नहीं चाहता, उसे अनुशासित करना पड़ता है। बचपन में तरह-तरह के खेल बड़े प्रिय होते हैं, पढ़ाई-लिखाई भार स्वरूप लगती है। मन भटकता , है। ऐसे में परिवार एवं विद्यालय उसे अनुशासन की शिक्षा देते हैं।
उसकी दैनिक दिनचर्या को नियमबद्ध किया जाता है। आज के विद्यार्थी सुखार्थी बन गए हैं। उन्हें बाज़ारू भोजन प्रिय है। उन्हें चरित्र-निर्माण की कोई चिंता नहींउन्हें अभिभावकों की सीख बहुत बुरी लगती है। उन्हें होमवर्क करने में आलस्य का अनुभव होता है।
देर रात तक जागना तथा सुबह देर से उठना उन्हें प्रिय है। फिल्मों के अभिनेता और अभिनेत्रियाँ उनके आदर्श हैं।
इन स्थितियों से बचने के लिए आवश्यक है कि दोषपूर्ण शिक्षा पद्धति को समाप्त किया जाए। ऐसे शिक्षकों की नियुक्ति की जाए जो नीति निपुण एवं चरित्रवान हों। अभिभावकों का भी कर्तव्य है कि वे अपने घर के माहौल को अनुशासित करें। वे स्वयं अपने बच्चों के लिए आदर्श